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धरती किसी की माँ नहीं हैं

पश्चिम के देशों ने विकास की रफ्तार में प्राकृतिक संसाधनो को जिस तरह से दोहन करना शुरु किया उस वक्त दुनिया की आबादी महज 1 अरब थी और ये देश अपने आप को विकसित देशों की कतार मे स्थापित कर पाए। चीन आज दुनिया में जिस तरह से इको सिस्टम को बिगाड़ने पर तूला हैं तो उसकी आबादी ही 1.5 अरब के करीब हैं और पूरी दुनियां की आबादी 6 अरब से भी ज्यादा हैं। अमेरिका क्षेत्र के हिसाब से कई देशों से छोटा है और वह दुनिया की सबसे बडीं अर्थव्यवस्था हैं और आज के समय में अमेरिया अगर छिकता हैं तो भी पूरी दुनियां के बाजारों में हलचल मच जाती हैं। पर्यावरण पर अंतराष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत रियो सम्मेलन 1992 से शुरु हुई और अब तक 23 वर्षो में विकसित बनाम विकासशील देशों के बीच खिची लकीर  मिटने का नाम नहीं ले रहीं। जाहिर सी बात हैं ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करनें के लिए सभी देशों को अपनी विकास की रफतार को कुर्बानी देनी होगी जिसके लिए कोई भी तैयार नहीं यानि मैं अकेला क्यों करुं। ये ठीक वैसे ही हैं जैसे दिल्ली में बढ़ते प्रदुषण के मद्यनजर सरकार कई अहम फैसले लेती हैं तो शुरु होने से पहले ही विरोध शुरु हो जाता हैं य

जट दी अरदास

मै पूत हां किसान दा ... गल करदा तकळे वन्गू सीदी मै इसी मिट्टी दे विच जमया हां.... ऐहे जमीन साडी मां हुंदी, दिल्ली दी संसद चे बह के तुस्सी करदे हो गल साडे हक दी, पर दिल्ली नहीं जानदी गल साडे दिल दी, बणिये , साहुकारां ते पत्रकारा नूं वल अपणे करके सरकारा सानू फायदे दसदी हैं पर जट दे पांव जडों जमीन दे पैदे हैं ता साडी जमीन भी हंसदी हैं....ते कहदी हैं... जटा अज गल तेरी पग ते आ खड़ी हैं.... सभाल पग अपणी, भावे पेजे अज 32 बोर चकणी.... एक एक दे गीटे भन्न दई.... गल बद जे ता वेरीया नू सफेदेया दे टंग दई.... पर जटा मै तेरी माँ हां... मां दी राखी लई तू अपणा शीश वी ला दई... अज दिया सरकारा नूं साडी लगदा फिक्र बाळी हैं... पर ओना नू की पता होदा की पंजाळी हैं.... औहो झूटे लंदे 20 लख दी गडिया ते,,, मै झूटे लंदा हा 20 फुट लम्बे सुहागे ते.... बस करो सियासत दे बंदयो....तुहाडे झास्या चे नहीं आणा.... तुस्सी ता हो ही इने झूटे की साख करादो ... भांवे बंदा होवे काणा.... बस ईनी जेही विनती हैं कि अपनी भेड़ी नज़रा दूर रखों साड़ी पेळीया तो...

वर्तमान राजनीति में मैकियावेली

निकोलो मैकियावेली इटली का राजनयिक एवं राजनैतिक दार्शनिक , संगीतज्ञ , कवि एवं नाटककार था। पुनर्जागरण काल के इटली का वह एक प्रमुख व्यक्तित्व था। वह फ्लोरेंस रिपब्लिक का कर्मचारी था। मैकियावेली की ख्याति उसकी रचना द प्रिंस के कारण है जो कि व्यावहारिक राजनीति का महान ग्रन्थ स्वीकार किया जाता है। मैकियावेली के विचारों की प्रासगिकता आज के दौर में भी उतनी ही हैं जितनी कि युरोप में पुनर्जागरण काल में थी। भारत की राजनीति व्यवस्था संधीय (फेडरल) ढाँचे पर टिकी हैं यानि भारत राज्यों का संघ हैं। सवा सौ करोड़ से भी ज्यादा की आबादी वाले देश में औसतन हर 50 किलोमीटर पर भाषा की विविधता देखनें को मिल जाती हैं। आजादी के बाद से भारत 90 के दशक तक अपनें औधोगिक उत्पादन व निर्यात बढ़ानें पर दे रहा था और इसी 90 के दशक के बाद देश में एक नए बाजार व्यवस्था कि शुरुआत हुई जिसे वर्तमान में निजीकरण की संज्ञा दी जाती हैं। देश आगामी साल की दुसरी तिमाही में 16वी लोकसभा के लिए अपनें मताधिकार का प्रयोग करनें जा रहा हैं । आज देश में हर 10 में से 4 के करीब 30 वर्ष के युवा हैं जो आज भी शैक्षिक योग्यता में अप

प्रमाणिकता के लिए कितना जायज हैं लिंग प्ररीक्षण

लॉरेनॉ रेक्स केमरोन, रेयान कई ऐसे नाम है जिन्होनें कुदरत को चुनौती दी। जन्म से ये लोग स्त्री लिंग के साथ पैदा हुए जो बाद में जेन्डर ट्रांस के जरीए पुरुष बनें। लॉरेना रेक्स आज पेशेवर रुप से फोटोग्राफर हैं । एंड्रियास क्रिगर जन्म से पुरुष थें जिन्हे महिला एथेलिट के रुप में जर्मनी के लिए कई प्रतिस्पधाए खेली। लॉरेनॉ रेक्स केमरोन नें फिमेंल सिम्प्टम के बावजुद अपने आप को पुरुष के लिहाज से जिने के लायक बनाया । भारत की पिंकी प्रमानिक का उदाहरण अलग हैं। पश्चिमी बंगाल के पुरलिया में जन्मी पिंकी पेशेवर धावक हैं जिसने 2006 के एशियन खेलों में स्वर्ण व 2006 के ही कामनवेल्थ खेलों मे रजत पद से देश का गौरव बढाया हैं। इसके अलावा कई उपलबधिया उनकें नाम है। 14 जुन 2012 को पिंकी की महिला मित्र नें यह आरोप लगाकर सनसनी मचा दी की पिंकी पुरुष हैं व उसनें उसके साथ शारारिक संबध बनाए हैं। अगले दिन पुलिस पिंकी को गिरफ्तार कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में ले लेती हैं जहां उसका डीएनए टेस्ट के लिए सैम्पल भी लिए गए। इसी बीच पिंकी का एक एमएमएस सोशल साइटस, युट्युब पर आ जाता हैं जिसमें पिंकी के सेक्स परीक्षण संबध

सुंदर और अमीर विरासत हैं भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति विभिन्न संस्कृतियों , अपने पड़ोसियों की परंपराओं और अपने स्वयं की प्राचीन विरासत है , जिसमें बौद्ध धर्म , वैदिक युग , स्वर्ण युग , मुस्लिम विजय अभियान और यूरोपीय उपनिवेश की स्थापना , विकसित सिंधु घाटी सभ्यता आदि का मिश्रण है. भारतीय संस्कृति में विभिन्न संस्कृतियों जो बहुत अनोखी है और अपने स्वयं के एक मूल्य है एक महान मिश्रण को दर्शाती है. भारत के सांस्कृतिक प्रथाओं , भाषा , सीमा , परंपराओं और हिंदू धर्म , जैन धर्म , बौद्ध धर्म , और सिख धर्म के रूप में धार्मिक प्रणाली की विविधता को दर्शाती है. विभिन्न समृद्ध संस्कृतियों का अनूठा मिश्रण एक महान विस्तार के लिए दुनिया के अन्य भागों को प्रभावित किया है. भारत में बोली जाने वाली भाषाओं की एक संख्या उसके विविध संस्कृति को जोड़ने का काम करती है. वर्तमान में भारत में 415 के करीब भाषा है , लेकिन भारतीय संविधान में हिन्दी के प्रयोग और अंग्रेजी संचार के दो आधिकारिक भाषाओं में संघ सरकार के लिए की घोषणा की है. व्यक्तिगत राज्य के आंतरिक संचार के अपने स्वयं के राज्य की भाषा में कर रहे हैं. भारत में दो प्रमुख भाषाई परिवारों इंड

बे-लगाम होता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ

29 जुन को प्रधानमंत्री की प्रिंट मिडिया के चुनिंदा सम्पादकों के साथ हुई बैठक में डॉ मनमोहन सिंह ने एक नए विषय पर चिंता व्यक्त की, कि देश मे मीडिया (कुछ को छोड़कर) कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका निभाने लगा हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं हैं। अगले दिन दिल्ली से छपने वाले कुछ समाचार पत्रों ने प्रधानमंत्री के इस ब्यान को हेडलाइन के साथ प्रकाशित किया, जबकि इका दुका समाचार चैनल ने इस ख़बर को अपनी हैडलाइन के लायक समझा। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो ये बात ख़बर के लायक थी ही नहीं। मीडिया भी समाज का अंग हैं यानी जिस तरह समाज में विभिन्न विचारधारा के लोग होते है ठीक उसी तर्ज़ पर मीडिया हाउस हैं। का़यदे से मीडिया स्वतंत्र तंत्र हैं यानी सरकार की तरह , जो सवेंधानिक ढांचे पर काम करती हैं और किसी वर्ग विशेष से पक्षपात नहीं कर सकती और सरकार के प्रहरी के रुप में विपक्ष हैं । जबकि मीडिया इन सबका माध्यम हैं जो हर किसी के विचार, जनभावनाओ आदि के लिए स्वतंत्र मंच हैं। धीरे धीरे ये मंच प्रायोजित होने लगा हैं और जो लोग इस मंच के प्रायोजक हैं उनकी भाषा हैं सिर्फ़ मुनाफा। और इसी मुनाफ