29 जुन को प्रधानमंत्री की प्रिंट मिडिया के चुनिंदा सम्पादकों के साथ हुई बैठक में डॉ मनमोहन सिंह ने एक नए विषय पर चिंता व्यक्त की, कि देश मे मीडिया (कुछ को छोड़कर) कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका निभाने लगा हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं हैं। अगले दिन दिल्ली से छपने वाले कुछ समाचार पत्रों ने प्रधानमंत्री के इस ब्यान को हेडलाइन के साथ प्रकाशित किया, जबकि इका दुका समाचार चैनल ने इस ख़बर को अपनी हैडलाइन के लायक समझा। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो ये बात ख़बर के लायक थी ही नहीं। मीडिया भी समाज का अंग हैं यानी जिस तरह समाज में विभिन्न विचारधारा के लोग होते है ठीक उसी तर्ज़ पर मीडिया हाउस हैं। का़यदे से मीडिया स्वतंत्र तंत्र हैं यानी सरकार की तरह , जो सवेंधानिक ढांचे पर काम करती हैं और किसी वर्ग विशेष से पक्षपात नहीं कर सकती और सरकार के प्रहरी के रुप में विपक्ष हैं । जबकि मीडिया इन सबका माध्यम हैं जो हर किसी के विचार, जनभावनाओ आदि के लिए स्वतंत्र मंच हैं। धीरे धीरे ये मंच प्रायोजित होने लगा हैं और जो लोग इस मंच के प्रायोजक हैं उनकी भाषा हैं सिर्फ़ मुनाफा। और इसी मुनाफ...