मेरा देश बदल रहा हैं या यू कहे कि मई 2014 से
कुछ समय पहले से ही बदलना शुरु हो चुका था। और ये बदलाव विचारधारा में आया हैं, एक
ऐसी विचारधारा जिसको पश्चिमी देशों ने दशको पहले छोड़ दिया था जिसे हम अपनाने जा
रहे हैं। बचपन में स्कूल में जब कोई आगे की बैंच का स्टुडेन्ट टीचर से सवाल करता
था तो पिछली बैंच के बच्चे उसे पढ़ाकू का तगमा दे देते थे पर आज सरकार के साथ ऐसा
नहीं हैं...... सरकार से विपरीत सवाल जो सरकार की विचारधारा से मेल नही खाता तो
सवाल करने वाले को देशविरोधी, मुस्लिम हितेषी या हाशिये पर खड़ी पार्टी का
कार्यकर्ता बना दिया जाता हैं। आखिर ये विचारधार कैसे पनप रही हैं खासकर इस दौर
में जब हम भारत को एक तरफ सिलिकन वैली का टेलेंट, स्पेस मिशन में अग्रणी देश के
रुप में देखते हैं।
1 वर्तमान परिपेक्ष ( Current Relative)
किसी एक व्यक्ति को समोहित करना बहुत मुश्किल
हैं पर यही प्रयोग जब भीड़ के साथ किया जाए तो परिणाम उत्साहवर्धनक रुप से सामने
आते हैं। हर व्यक्ति किसी ना किसी सख्स की बातों को सच मान लेता हैं जैसे खिलाड़ी,
फिल्म स्टार, अर्थशास्त्री, विदेशी नेता आदि आदि। जब इस तरह की शख्सियत वाले कुछ
व्यक्तियों का समूह एक जैसी बात बोलें तो जनता उसे सच मान लेती हैं और जो कसर बच
जाती हैं उसे विजूअल मीडिया यानि न्यूज चैनल के द्वारा जनता तक पहुंचाया जाता हैं
जिसे Halo effect कहा जाता हैं। 2014 में यही सब हुआ। जनता पुर्ववर्ती सरकार से तंग आ चुकी थी
हालांकि अब लगने लग गया हैं कि ऐसा नहीं था....... जो लोग बढ़ते भारत में पैदा हुए
हैं खासकर 80 के दशक के बाद वो इतिहास को पढ़ते जरुर हैं पर अपने विचार स्वतंत्र
रखते हैं और होना भी यही चाहिए पर एक वर्ग है जो ये नहीं होने दे रहा। आजादी के
बाद से देश की प्रगति में हर शख्स का योगदान हैं नेहरु, इंदिरा, चरणसिंह, नरसिम्हा
राव, राजीव गाँधी, अटल बिहारी बाजपेयी. डॉ मनमोहन सिंह आदि ने किसी ना किसी रुप
में देश को नई उचांईयों कर पहुँचाया हैं और ये बात हमारे वर्तमान प्रधान सेवक
नरेन्द्र मोदी भी मानते हैं कि देश को आगे बढ़ाने में हर किसी का योगदान हैं... ये
सब प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी नें संसद में कही जो ऑन रिकार्ड हैं यहाँ ऑन रिकार्ड
का मतलब हैं कि बोलने वाला शख्स अपनी बात से मुकर नहीं सकता और ये बाते प्रमाणिक
होती हैं पर जब प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी किसी चुनावी सभा या विदेशी धरती पर
बोलते हैं तो ऐसा लगता हैं कि हम 2014 से पहले जंगलीपन, लाचार, व्याकुलता भरे
माहौल में जी रहे थे… यानि विगत दशकों से भारत अन्न के मामले मे आत्मनिर्भर,
स्पेस मिशन में नए कीर्तिमान, टेक्नोलोजी में अव्वल, रक्षा के मामले में सेना का
आधुनिकरण, देश के शहरों का आधुनिकरण, दुनिया की बढ़ती जीडीपी.... आदि आदि ना जाने
कितनी उपलब्धिया सिर्फ एक झूठ था या उसे झूठा करार देने की साजिश हैं। क्या देश का
सिर्फ गुजरात ही ऐसा प्रांत हैं जहाँ के लोग ही सम्पंन हैं बाकि राज्यों के लोग
पिछड़ें ? क्योंकि ये बाते सोशल मीडिया पर पिछले 3 सालों से घुम रही कि आज भारत का डंका
विदेशी धरती पर जितनी जोर से बज रहा हैं उसकी डेसीबल कान के पर्दे फोड़ देगी। हम
सबने एक लोकतांत्रिक सरकार को चुना हैं पर क्या आज कोई फैसला सिर्फ दो इंसानो के
आलावा ले सकता हैं एक पीएम दूसरे पार्टी के अध्यक्ष। बाकि एमपी, मंत्री तो शायद
इसी उम्मीद में ऑफिस जाते हैं कि उन्हे इस बात का अहसास होता रहे कि उन्होंने भी
पद और गोपनीयता की शपथ ली हैं। सरकार के फैसलो की जानकारी सोशल मीडिया के
जरीए ही मिलती हैं या फिर पीएम की किसी चुनावी सभा में। क्यों सरकार के हर फैसले
को बहस के जरिए उस पर मूल्यांकन करने की बजाय देशभक्ति बनाम देशद्रोही के तराजू से
तौला जाने लगा हैं जैसा कि नोटबंदी के दौरान देखने को मिला। यानि हमनें अपने आप को
शीशें के उस कमरें मे बंद कर लिया जहाँ से बाहर नहीं देखा जा सकता पर बाहर वाला हमें
देख सकता हैं।
2 लोंकतंत्र के सतम्भ
खामोश....
अगर आपको किसी की विचारधारा को बदलना हो तो सबसे
पहले उस शख्स की वर्तमान विचारधारा को दूषित घोषित कर दो....... ये सिंद्धात भारत
की जनता पर आजमाया जा रहा हैं जो सफल प्रयोग साबित हो रहा हैं। उदाहरण के लिए अगर
मैं बीजेपी को वोट नहीं करता तो ये घोषित कर दिया जाए की मैं देश के हिंदू राष्ट्र
बनने के बीच रुकावट हूँ...सरकार के नुमांयदे हिंदुओं को ये अहसास करवाये की ये देश
सिर्फ हिंदु राष्ट्र ही हैं और कोई अगर बाधा उत्पन करेगा तो उसे पाकिस्तान भेज
दिया जाएगा....., क्रिकेट मैच में पाकिस्तान को छोड़ कर किसी भी देश को चियर कर
सकते हो... आखिर देश भक्ति का पैमाना हैं क्या ? और ये सब खबरें लोकतंत्र का चौथा सतम्भ यानि
मीडिया जिसमें लगभग सभी शामिल हैं इस तरह से पेश करते हैं कि किसी की सरकार से
सवाल या विरोध करने की हिम्मत नहीं हो पाती। क्यों कि जो विरोध करेगा उसका जवाब
सरकार से पहले उसी शख्स के इलाके की भीड़ देशभक्ति के नाम पर उसे सबक सीखा चुकी
होगी और सबक ऐसा होगा की उस खबर को पढ़कर कोई दूसरा हिम्मत नहीं कर पाएगा.......
ये प्रयोग सफल साबित हो रहा हैं। यानि जिस आपातकाल के बारे में जिक्र देश के
प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रम में करते हैं ठीक वैसे ही छदम आपातकाल की शुरुआत
हो चुकी हैं।
बस फर्क इतना हैं कि उस समय इंदिरा गाँधी नें सीधे मीडिया पर सेंशरसिप लगा दी थी और अब सरकार नें छदम राष्ट्रवाद व बाजार के जरीए मीडिया का मुँह बंद कर दिया गया हैं जो 70 के दशक के आपालकाल से कही ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि उस समय लोगों में सहीं व गलत के बीच फर्क करनें की सोच थी।
बस फर्क इतना हैं कि उस समय इंदिरा गाँधी नें सीधे मीडिया पर सेंशरसिप लगा दी थी और अब सरकार नें छदम राष्ट्रवाद व बाजार के जरीए मीडिया का मुँह बंद कर दिया गया हैं जो 70 के दशक के आपालकाल से कही ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि उस समय लोगों में सहीं व गलत के बीच फर्क करनें की सोच थी।
3 एक नए समूह का जन्म
ये बात सही हैं कि हमारा
देश हिंदु बहुसंख्यक देश हैं पर हमारा संविधान किसी एक धर्म विशेष को सर्वोपरि
नहीं मानता दूसरे शब्दों मे कहो तो भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं और संसद
सर्वोपरि हैं। हमारे नैतिक मूल्य, खानपान, रहन-सहन भिन्न भिन्न हो सकते हैं पर जब
समाज में हम रहते हैं तो हमारे मूल्यों का निर्धारण संविधान के अनुसार होगा। क्या
गलत हैं और कोई गलत हैं तो उसको सजा देने का काम कानून का हैं आदि आदि.........।
पर पिछले 2 वर्षों से अचानक बदलाव शुरु हो गया हैं एक नया समूह जन्म ले चुका हैं
जिसका काम सही गलत का फैसला करना और दंड देना हैं। जब हम वैश्वीकरण की बात करते
हैं तो हमारी भारतीयता उबाले मारने लगती हैं.... कहते हैं कि अमेरिका में भारतीयों
का डंका बज रहा हैं पर जरा सोचिए अगर अमेरिका भी हमारी तरह सोचने लग जाए तो क्या
हम भारतीयों का डंका सिलिकन वैली में बज पाएगा। यानि इस नए समूह का राष्ट्रवाद एक
सीमित परिधि में ही कैद हैं जिसे संचालित करनें वाला कानून के दायरे में रहकर ये
काम नहीं कर सकता इसलिए ये सब काम इस समूह से करवाया जाता हैं। क्या देश का हर
मुस्लमान शक की नजरो से देखा जाना चाहिए या फिर देश का हर हिंदु देशभक्त हैं ये
आँख बंद कर के मान लेना चाहिए ? हर किसी को धर्म चुननें
की आजादी हैं....... वो धार्मिक है या नहीं ये बेहद निजी मामला हैं पर आजकल ये बात
थोपी जा रही हैं कि सभी भारतीयों के पुर्वज हिंदू थें और अब घर वापसी के जरिए वापस
आ जाए वरना घसीट कर लाया जाएगा। इस हिसाब से तो हिंदुओं की रक्षा देश की बहादूर
कौम सिखों ने भी की थी पर सिख तो ऐसा नहीं सोच रहे बल्कि पंजाब जैसे सिख प्रधान
सूबें में कोई ऐसी घटना सामने नहीं आई जो सामाजिक सोहार्द को बिगाड़ती हो। पिछले
एक साल में देश में ऐसी कई घटनाए हुई जिसको अंजाम इसी भीड़ (नए समूह) ने दिया चाहे
वो गोमांस का मसला हो या गोरक्षा के नाम पर हो...... और सताधारी लोग बड़े अदब के
साथ घटना को हल्के में लेते हैं यानि कही ना कही ये संदेश जनता को दिया जा रहा हैं
कि विचारधार के साथ बहों या डूब मरो पर विचारधारा के विपरीत तैरने की कोशिश मत
करों। लोंकतंत्र का सतम्भ मीडिया खामोशी के साथ देख रहा हैं कोई सवाल करने
की बजाए ये साबित करने में लगा हैं कि वह कितना सहमत हैं इस नई विचारधारा
सें...... सोशल मीडिया कुछ मामलों में सहायक हैं कि खबर को दबाने नहीं देता वरना
आज तो हम इसी गलतफहमी में जी रहे होते कि कश्मीर भारत का सबसे शांत हिस्सा
हैं....... सीमा पर हमारे सैनिक सुरक्षित हैं..... पाकिस्तान अब डर के मारे चुप
बैठा हैं....... कालेधन वाले जेल में है........ नोटबंदी से सारा कालाधन खत्म हो
गया हैं..... किसान की आय 2017 में दूगनी हो गई हैं........ दुनिया की टॉप कंपनिया
अपनी मैनूफेक्चरिगं इंडिया में कर रही हैं..... आदि आदि। ये सब बाते किसी भी टीवी
न्यूज चैनल पर नहीं दिखाई देगी बल्कि सोशल मीडिया के जरिए ही लोगों को पता चली हैं
कि जो सपनें हमें दिखाए गए वो कितने सच हुए पर फिर भी वही बात हम पुछनें की हिम्मत
नहीं कर पा रहें। क्योकि एक नए उन्मादी समाज (समूह) का डर भी सता रहा हैं।
4 समाधान
जाहिर सी बात हैं कि
लोकंतात्रिक देश में हर समस्या का समाधान राजनैतिक व्यवस्था के जरिए ही होता हैं।
हर राजनैतिक दल में जनता के चुने नुमांयदे ही होते हैं और हर दल में अच्छे व बुरे
लोग होते हैं पर आखिर में चुनते तो हम ही हैं। गाँधीजी के असहयोग आंदोलन को याद करे
तो पता चलता हैं कि बिना हिंसा या बहस के हम जीत हासिल कर सकते हैं। यानि खामोशी
के साथ जो चीज हमें गलत लगे उसे ना कहें, जो गलत लगे वहीं सवाल करें सोशल मीडिया
के जरिए.... बिना वादविवाद के। कौनसी खबर सहीं हैं इसकी पड़ताल करें, अखबार या
न्यूज चैनल्स पर दिखाया जा रही घटना को पूरा सच मानने की बजाए अपने विवेक का
इस्तेमाल करे... हो सकता हैं इसमें समय लगे पर 5 साल से ज्यादा समय तो नहीं लग
सकता क्यो कि हमें हर 5 साल में एक बार अपनी ताकत दिखाने का अवसर मिलता हैं।
क्योंकि देश कोई शख्स चलाता हैं ये गलतफहमी हैं.... देश संविधान से चलता हैं अब ये
बात उस शख्स पर निर्भर हैं कि जिसे हमने चुना हैं.... वो संविधान में कितनी आस्था
रखता हैं। इस नए समूह से डटकर मुकाबला करना होगा क्योकि ये समूह ना मुस्लिम विरोधी
हैं और ना ही हिंदू हितेषी।
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