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प्रमाणिकता के लिए कितना जायज हैं लिंग प्ररीक्षण

लॉरेनॉ रेक्स केमरोन, रेयान कई ऐसे नाम है जिन्होनें कुदरत को चुनौती दी। जन्म से ये लोग स्त्री लिंग के साथ पैदा हुए जो बाद में जेन्डर ट्रांस के जरीए पुरुष बनें। लॉरेना रेक्स आज पेशेवर रुप से फोटोग्राफर हैं । एंड्रियास क्रिगर जन्म से पुरुष थें जिन्हे महिला एथेलिट के रुप में जर्मनी के लिए कई प्रतिस्पधाए खेली। लॉरेनॉ रेक्स केमरोन नें फिमेंल सिम्प्टम के बावजुद अपने आप को पुरुष के लिहाज से जिने के लायक बनाया । भारत की पिंकी प्रमानिक का उदाहरण अलग हैं। पश्चिमी बंगाल के पुरलिया में जन्मी पिंकी पेशेवर धावक हैं जिसने 2006 के एशियन खेलों में स्वर्ण व 2006 के ही कामनवेल्थ खेलों मे रजत पद से देश का गौरव बढाया हैं। इसके अलावा कई उपलबधिया उनकें नाम है। 14 जुन 2012 को पिंकी की महिला मित्र नें यह आरोप लगाकर सनसनी मचा दी की पिंकी पुरुष हैं व उसनें उसके साथ शारारिक संबध बनाए हैं। अगले दिन पुलिस पिंकी को गिरफ्तार कर 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में ले लेती हैं जहां उसका डीएनए टेस्ट के लिए सैम्पल भी लिए गए। इसी बीच पिंकी का एक एमएमएस सोशल साइटस, युट्युब पर आ जाता हैं जिसमें पिंकी के सेक्स परीक्षण संबध...

सुंदर और अमीर विरासत हैं भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति विभिन्न संस्कृतियों , अपने पड़ोसियों की परंपराओं और अपने स्वयं की प्राचीन विरासत है , जिसमें बौद्ध धर्म , वैदिक युग , स्वर्ण युग , मुस्लिम विजय अभियान और यूरोपीय उपनिवेश की स्थापना , विकसित सिंधु घाटी सभ्यता आदि का मिश्रण है. भारतीय संस्कृति में विभिन्न संस्कृतियों जो बहुत अनोखी है और अपने स्वयं के एक मूल्य है एक महान मिश्रण को दर्शाती है. भारत के सांस्कृतिक प्रथाओं , भाषा , सीमा , परंपराओं और हिंदू धर्म , जैन धर्म , बौद्ध धर्म , और सिख धर्म के रूप में धार्मिक प्रणाली की विविधता को दर्शाती है. विभिन्न समृद्ध संस्कृतियों का अनूठा मिश्रण एक महान विस्तार के लिए दुनिया के अन्य भागों को प्रभावित किया है. भारत में बोली जाने वाली भाषाओं की एक संख्या उसके विविध संस्कृति को जोड़ने का काम करती है. वर्तमान में भारत में 415 के करीब भाषा है , लेकिन भारतीय संविधान में हिन्दी के प्रयोग और अंग्रेजी संचार के दो आधिकारिक भाषाओं में संघ सरकार के लिए की घोषणा की है. व्यक्तिगत राज्य के आंतरिक संचार के अपने स्वयं के राज्य की भाषा में कर रहे हैं. भारत में दो प्रमुख भाषाई परिवारों इंड...

बे-लगाम होता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ

29 जुन को प्रधानमंत्री की प्रिंट मिडिया के चुनिंदा सम्पादकों के साथ हुई बैठक में डॉ मनमोहन सिंह ने एक नए विषय पर चिंता व्यक्त की, कि देश मे मीडिया (कुछ को छोड़कर) कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिका निभाने लगा हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ठीक नहीं हैं। अगले दिन दिल्ली से छपने वाले कुछ समाचार पत्रों ने प्रधानमंत्री के इस ब्यान को हेडलाइन के साथ प्रकाशित किया, जबकि इका दुका समाचार चैनल ने इस ख़बर को अपनी हैडलाइन के लायक समझा। आम बोलचाल की भाषा में कहें तो ये बात ख़बर के लायक थी ही नहीं। मीडिया भी समाज का अंग हैं यानी जिस तरह समाज में विभिन्न विचारधारा के लोग होते है ठीक उसी तर्ज़ पर मीडिया हाउस हैं। का़यदे से मीडिया स्वतंत्र तंत्र हैं यानी सरकार की तरह , जो सवेंधानिक ढांचे पर काम करती हैं और किसी वर्ग विशेष से पक्षपात नहीं कर सकती और सरकार के प्रहरी के रुप में विपक्ष हैं । जबकि मीडिया इन सबका माध्यम हैं जो हर किसी के विचार, जनभावनाओ आदि के लिए स्वतंत्र मंच हैं। धीरे धीरे ये मंच प्रायोजित होने लगा हैं और जो लोग इस मंच के प्रायोजक हैं उनकी भाषा हैं सिर्फ़ मुनाफा। और इसी मुनाफ...

मुनाफे का गणतंत्र

आज़ादी के बाद हुई 7 वी जनगणना में भारत की आबादी तक़रीबन 121  करोड़ हैं जिसमे पुरुष 62 करोड़ 37 लाख व महिलाएं 58  करोड़ 64 के करीब हैं व 74 .04 फीसदी साक्षरता हैं दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी हमारे देश की हैं ये 121 करोड़ का आंकड़ा कई मायनो में महत्वपूर्ण हैं … मसलन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार , सबसे बड़ी युवा आबादी ,  विभिन्न बोली - धर्म के लोग आदि …. आदि | और क्रिकेट में जीत भी इसी बाज़ार का हिस्सा हैं क्यों की 121  करोड़ के बाज़ार में कोल्ड ड्रिंक तभी बिकेगी जब उस पर धोनी का फोटो होगा ऐसे में 2 करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका का जितना किसी के लिए भी फायदेमंद नही होता | इतनी बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व कॉर्पोरेट सरकार के हाथ में हैं | वर्तमान में जो उथल पुथल चल रही हैं वो यकायक नही हैं .........जनता तक जो जानकारी पहुचती हैं उसका माध्यम मिडिया हैं , देश में कई घोटाले जेसे एस बेन्ड , 2G स्केम , कॉमनवेल्थ घोटाला , मनरेगा , या फिर PDS सिस्टम में अनियमितता के मामले सामने आये हैं इनमे से एस बेन्ड को छोड़ कर किसी को रोकने में न तो मिडिया कारगर साबित हुआ हैं और न ही विपक्...

विनायक सेन : सिस्टम की उपज…………..

"ईश्वर ने सब मनुष्यों को स्वतन्त्र पैदा किया हैं, लेकिन व्यतिगत स्वतंत्रता वही तक दी जा सकती हैं, जहाँ दुसरो की आजादी में दखल न पड़े यही रास्ट्रीय नियमो का मूल हैं” जयशंकर प्रसाद का ये कथन किसी भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था वाले देश के लिए सटीक बैठता हैं तो आखिर विनायक सेन ने ऐसा क्या किया की उन्हें रायपुर के जिला सत्र न्यायालय ने उम्रकैद की सजा दी? छत्तीेसगढ़ पुलिस ने पीयूसीएल नेता डॉ. बिनायक सेन को जन सुरक्षा कानून के अंतर्गत 14 मई 2007 को गिरफ्तार किया था। बिनायक सेन को देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, लोगों को भड़काने, प्रतिबंधित माओवादी संगठन के लिए काम करने के आरोप में दोषी करार दिया गया था और 24 दिसंबर 2010 को अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। और सजा के बाद जैसी अपेक्षा थी कई बुद्धिजीवी सामने आये और नई दिल्ली के जंतर मंतर पर विचारों, कविताओं और गीत-संगीत के जरिये अपना विरोध दर्ज कराने के लिए अर्पणा सेन, शार्मिला टैगोर, गिरीश कर्नाड, गौतम घोष, अशोक वाजपेयी व रब्बी शेरगिल जैसी कई जानीमानी हस्तियों ने पत्र लिखकर विनायक सेन के लिए न्याय की मांग की। डॉ. बिनायक सेन के मुकदमे के ...

Time To Big-Switch

“ Mr. and Mrs. Chauhan is professionally farmer & have their own apple farm near Shimla. Their single son Nitin is modern youth, which is full of modern thoughts, that is to say parents & Nitin both are on 180 degree at their Brooding. Where, father wants to push their ancestral business that the same Nitin don’t agree with father and he want to chose new line, Nitin Chauhan is a tattoo artist who has a successful business in Chandigarh . Latter, The Gulatis are sent in as replacement parents …………” that isn’t a film script, yes this is true story of UTV BINDAAS program Big Switch -2. The program which is based on family and admirable initiative for decries generation gap. In India , beginning of 90 decade, the TV revolution has begun and changes everything, several entertainments, news channels came in front of audiences. From this, the profit also grows like a Bamboos tree. Changing is law of nature……..this motto has been copied by TV industries and to entertainment, for en...

राष्ट्रवाद का बदलता स्वरुप

धर्म और राष्ट्र पर बहस करने पर वोल्तेयेर का एक कथन याद आता है .. ...... "हो सके मैं आपके विचारो से सहमत ना हो पाऊ , फिर भी मैं अपने विचार प्रकट करने के अधिकारों की रक्षा करूगां ……” | क्योकि सभी का राष्ट्रवाद पर एकमत होना नामुमकिन हैं ख़ासकर सामाजिक चिंतको का साधारण जन मानस के साथ , इस जन मानस में सरकार भी शामिल है चूँकि संसदीय व्यवस्था में जनता सर्वोपरि होती हैं | काल मार्क्स ने भी धर्म को लोगों की अफीम कहा , चूँकि लोग इसके नशे में रहते है चाहे वो वैचारिक ही क्यों ना हो | ठीक उसी तरह राष्ट्रवाद भी बड़ी बहस का विषय है और जब कोई अपने विचार रखता है तो ठीक वही हाल होता हैं , जैसे कोई मधुमखी के छत्ते को छेड़ता है उसे ये तो पता होता है की कोई मक्खी उसे काटेगी पर कोंन सी काटेगी ये वो नही जानता... ? अगर साधारण भाषा में राष्ट्रवाद को परिभाषित करे तो ये ही कहेगे को अपने देश के हित को सर्वोपरि समझे , उसकी अस्मिता को बनाये रखें | भारतीय सविधान की उदेशिका भी इस बात का ज़िक्र करती है जिसके बीच के अंश इस प्रकार हैं , "........... समस्त नागरिको को सामाजिक , आर्थिक , राजनेतिक न्याय , व...